24 जनवरी को सकट चौथ 2019 की पूजा का क्या है समय, व्रत, विधि विधान एवं कथा

पूजा का शुभ समय 
माघ मास कृष्ण पक्ष के चतुर्थी को सकट चौथ का व्रत किया जाता है। ये व्रत इस बार 24 जनवरी 2019 को गुरुवार के दिन होगा। इस दिन संकट हरण गणपति तथा चंद्रमा का पूजन होता है। ये व्रत संपूर्ण दिन निराहार रखा जाता है आैर रात में चंद्रमा या तारों के दर्शन करके अर्ध्य देकर व्रत खोला जाता है। खास बात है कि इस बार 48 वर्षों बाद अर्ध कुंभ पर्व के दौरान ये व्रत होगा आैर इस दिन गणेश चतुर्थी के साथ गुरुवार पड़ने से भगवान विष्णु का भी पूजन किया जायेगा। इसे तिलकुट चतुर्थी भी कहा जाता है। भारतीय समयानुसार सायं काल 9:25 पर चंद्रमा उदय होगा अत इससे पूर्व पूजन कार्य पूर्ण करके अर्ध्य देनें की सभी तैयारियां पूर्ण कर लें। वहीं ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय के अनुसार क्योंकि इस बार संकष्टी गणेश चतुर्थी पर पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, शोभन मिल रहा है अतः यह व्रत सर्वमंगलकारी है। इस दिन बुद्धि- विद्या वारिधि गणेश तथा चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए ! दिन भर व्रत रहने के बाद सायं काल चन्द्र दर्शन होने पर दूध का अर्घ देकर चन्द्रमा की बिधिवत पूजा की जाती है। गौरी - गणेश की स्थापना करके पूजन करके तथा वर्ष भर उन्हें घर में रखा जाता है।

एेसे करें पूजा 
सर्वप्रथम सुबह स्नान करके शुद्घ होने के बाद मेंहदी लगायें। इस दिन सफेद तिल और गुड़ का तिलकुट बनाएंं। इसके बाद पूरे दिन निराहार व्रत करने के बाद शाम को पट्टे पर जल का लोटा, चावल, रोली, एक कटोरी तिलकुट, और कुछ रुपए रखें। अब सतिया बना कर पाटा उस पर रख दें। इसके बाद गणेश जी की पूजा आैर वंदना करें। पूजा में गजाननं भूत गणादि सेवितं,कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥इस श्लोक का पाठ करें आैर उन्हें पुष्प आैर नैवेद्य अर्पित करें। नैवेद्य में तिल तथा गुड़ के बने हुए लड्डु, गन्ना, शकरकंद, अमरूद, गुड़ तथा घी शामिल करें। अब चौथ की कहानी कहानी सुनने के बाद एक कटोरी में तिलकुट और रुपए रख कर सास या घर के बड़े के पैर छूकर उसे दें। इसके बाद हाथ में जल आैर तिलकुट लेकर चंद्रमा को अर्ध्य दें आैर प्रणाम करके संतान की लंबी आयु का आर्शिवाद मांगे। सारे कार्य के बाद भोजन करने से पूर्व इच्छा अनुसार रुपए और तिलकुट जो भी कथा सुनाये उसे दे दें। स्वयं भी तिलकुट को प्रसाद रूप में ग्रहण करें। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर जातक/जातिका के कुण्डली में बुध ग्रह से पीड़ा या कष्ट मिल रहा हो तो उन्हें भी आज के दिन गणेश चतुर्थी का व्रत व पूजन करना चाहिए । चाहे आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा हो, कुंडली में बुध ग्रह अशुभ स्थिति में हो या आपके द्वारा किए जा रहे कार्यों में आपको सफलता नहीं मिल रही हो, ऐसी स्थिति में हर बुधवार को भगवान श्री गणेश को प्रसन्न कर समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। आज के दिन पूजनोपरान्त गणेश जी के 1008 नाम से या" ॐ गं गणपतये नमः" मन्त्र से 17 बार गणेश जी को निम्न मन्त्र से दूर्वा अर्पित करने से समस्त कष्ट दूर होते है व आपके मनोरथ की पूर्ति होती है।

अलग अलग परंपरायें 
इस व्रत के दौरान विभिन्न स्थानों पर अलग अलग परंपराआें का पालन किया जाता है। जैसे कर्इ स्थानों पर नैवेद्य सामग्री, तिल, ईख, गंजी, अमरूद,गुड़ तथा घी से चन्दमा एवं गणेश जी को भोग लगाया जाता है ! यह नैवेद्य रात्रि भर डलिया इत्यादि से ढंककर यथावत रख दिया जाता है, जिसे पहार कहते है ! पुत्रवती मातायें पुत्र तथा पति की सुख समृद्धि के लिए व्रत रहती है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उस ढंके हुए पहार को पुत्र ही खोलता है तथा भाई - बन्धुओं में वितरित करता है। मान्यता है इससे आपस में प्रेम भाव स्थापित होता है। अलग-अलग राज्यों मे विभिन्न प्रकार के तिल और गुड़ के लड्डु बनाये जाते हैं। तिल के लड्डु बनाने लिए तिल को भूनकर, गुड़ की चाशनी में मिलाया जाता है। कुछ जगह गुड़ को तिल के साथ कूट कर बनने वाले तिलकूट का पहाड़ बनाया जाता है, तो कहीं पर इसका बकरा भी बनाते हैं। गणेश पूजा करके तिलकूट के बकरे की गर्दन घर का कोई बच्चा काटता है आैर उसको प्रसाद रूप में खाते हैं।  

क्या है सकट चौथ की कथा
वैसे तो इस दिन कर्इ कथायें पढ़ी जाती हैं परंतु एक प्रचलित कथा के अनुसार एक गांव में एक साहूकार और साहूकारनी रहते थे। दोनों ही कोर्इ पूजा पाठ नहीं करते थे। संभवत इसी कारण उनकी कोर्इ संतान नहीं थी। एक दिन साहूकारनी अपने पड़ोसी के घर गयी तो उसने देखा कि वो कोर्इ पूजा कर रही है। पूछने पर पता चला कि उस दिन सकट चौथ थी आैर पड़ोसिन उसी की पूजा कर रही थी। साहूकारनी ने उससे पूछा कि चौथ का व्रत करने से क्या होता हैं इस पर पड़ोसन ने कहा कि इसे करने से अन्न, धन, सुख, सुहाग, संतान सब मिलता है। इस पर साहूकारनी ने कहा यदि वो गर्भवती हुर्इ तो सवा सेर तिलकुट बना कर चौथ का व्रत करेगी। गणपति की कृपा वो गर्भवती हो गर्इ। तब उसने संतान के जन्म पर व्रत पूजा करने का इरादा किया। कुछ समय बाद उसका पुत्र हुआ तो फिर उसने व्रत को टाल दिया आैर कहा कि जब उसके बेटे का विवाह होगा तब वो सकट का व्रत करेगी। बेटा बड़ा हुआ आैर उसका परदेश में विवाह सुनिश्चित हो गया। जब बेटा बरात लेकर गया तब भी साहूकारिनी ने व्रत करने का इरादा नहीं दिखाया। इससे गणेश भगवान रुष्ट हो गए, आैर चौथ माता भी नाराज हो गर्इ। जिसके चलते बेटा फेरों के बीच से अदृश्य हो गया आैर चौथ माता ने उसे जंगल में पीपल के पेड़ पर बिठा दिया। बहुत खोजने पर भी जब वर नहीं मिला तो विवाह आधा हुआ रह गया आैर सभी अपने घर चले गए। एक दिन उस युवक की अ़र्द्घ विवाहित पत्नी अपनी सहेलियों के साथ पूजा के लिए दूब लेने जंगल गर्इ। रास्ते में वही पीपल का पेड़ पड़ा जिस पर उसका आधा पति बैठा था। उसने आवाज दी आे में मेरी अर्द्घ ब्याही। डर कर लड़की घर चली आर्इ पर दुख से सूखने लगी। जब उसकी मां ने उसका कारण पूछा तो उसने जंगल की घटना का जिक्र किया। उसकी मां उसी स्थान पर गर्इ। तो उसने देखा कि सेहरा पहने साफा बांधे उसका जमार्इ पीपल पर बैठा है। उसने इसका कारण पूछा तो लड़के ने बताया कि उसकी मां ने बोलने के बाद भी चौथ का तिलकुट नहीं किया, इस लिए चौथ माता ने नाराज हो कर उसे वहां बैठा दिया। यह सुनकर लड़की की मां, साहूकारनी के घर गई और उससे पूछा की तुमने सकट चौथ का कुछ बोला था तो उसने कहा हां तिलकुट बोला था। तब उसकी समधिन ने कहा कि बोलने के बावजूद अपना वचन ना निभाने के कारण सबको दंड भुगतना पड़ रहा है। इस पर साहूकारिनी ने कहा कि जैसे ही उसका बेटा बहु लेकर घर आयेगा वो तिलकुट करेगी। इससे गणेश जी प्रसन्न हो गए और उसके बेटे को मुक्त करके फेरे पूरे करने का आर्शिवाद दिया। धूमधाम से विवाह हो गया आैर वह बहु को लेकर घर आया। इसके बाद प्रसन्न साहूकारनी ने ढाई मन तिलकुट का पूजन किया। साथ ही प्रार्थना की कि हे श्री गणेश आैर चौथ माता जैसे आपके आर्शिवाद से मेरे कष्ट दूर हुए एेसे सबके दूर हों आैर वो हमेशा सकट चौथ आैर तिलकुट करने लगी। तभी से सब लोग ये कथा को पढ़ कर इस व्रत को करते हैं।

 

 

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