भारत को इमरान खान से बेहतरी की उम्मीद नहीं करनी चाहिए

पाकिस्तान तहरीके इंसाफ यानी पीटीआई के प्रमुख इमरान खान पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री बनने को तैयार हैैं। हालांकि पाकिस्तान चुनाव आयोग की वेबसाइट के नाकाम हो जाने के कारण चुनाव नतीजों की आधिकारिक घोषणा होने में देर हो रही है, लेकिन इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सामने आए नतीजों के हिसाब से इमरान की पार्टी सबसे बडे़ दल के तौर पर उभर आई है। भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में कैद पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) दूसरे और आसिफ अली जरदारी एवं बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी तीसरे स्थान पर रही। एक बड़ी संख्या में छोटी पार्टियों के उम्मीदवार और निर्दलीय भी नेशनल असेंबली यानी पाकिस्तानी संसद पहुंचने में सफल रहे हैैं।

जाहिर है कि वे इमरान खान का समर्थन करने के लिए तैयार होंगे। यह काम पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी भी कर सकती है। इस तरह इमरान खान को करीब दो दशक पुराने अपने सपने को साकार करने में आसानी होगी। हालांकि जब इमरान अपना दल बनाकर राजनीति में कूदे थे तब और उसके बाद भी वह सियासत के प्रति संजीदा नहीं दिखते थे। उन्हें गंभीर राजनेता के तौर पर देखा भी नहीं जाता था। यह सच है कि उनकी राजनीतिक सफलता में सेना का सहयोग है, लेकिन उसकी ओर से कहा यही जाएगा कि उसका पाकिस्तान की राजनीति से कोई लेना-देना नहीं। सेना कुछ भी कहे, हकीकत यही है कि वह पाकिस्तान के सबसे ताकतवर नेता नवाज शरीफ को राजनीतिक तौर पर खत्म करने पर तुली थी।

राजनीतिक रूप से पाकिस्तान के सबसे अहम राज्य पंजाब को नवाज शरीफ का गढ़ माना जाता है। पाकिस्तानी सेना को यह पसंद नहीं कि देश की सुरक्षा एवं विदेश नीति के साथ-साथ भारत संबंधी नीति को कोई नेता अपने हिसाब से चलाए। बतौर प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ऐसा ही करना चाहते थे और वह इसे अपना संवैधानिक अधिकार भी समझते थे। सेना को नवाज शरीफ के पर कतरने का मौका 2016 में तब मिला जब पनामा पेपर्स मामले में यह सामने आया कि उनके परिवार के लोगों की विदेश में संपत्ति और व्यवसाय है। इसी के बाद वह सेना और अदालतों की घेरेबंदी में आ गए। पहले तो उन्हें राजनीतिक पद धारण करने के अयोग्य ठहराया गया और फिर उन्हें और उनकी बेटी को भ्रष्टाचार के आरोप में सजा सुना दी गई।

राजनीतिक शहादत दिखाने के इरादे से नवाज शरीफ गिरफ्तारी के खतरे के बावजूद बेटी के साथ पाकिस्तान लौटे। उन्हें विमान से सीधे जेल भेज दिया गया और चुनाव प्रचार के दौरान जमानत पर बाहर नहीं आने दिया गया। इसके बाद उनके कई सहयोगी और समर्थक इमरान खान के पाले में चले गए। ऐसा इसलिए भी हुआ, क्योंकि सेना की ऐसी ही मंशा थी। इसके बाद भी तमाम लोग नवाज के साथ खड़े रहे। शायद इसी कारण नेशनल असेंबली के साथ हुए विधानसभा चुनावों में नवाज की पार्टी अपने गढ़ पंजाब को बचाने में सफल रही। इसके बावजूद इस पर यकीन करना कठिन है कि सेना नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ या उनके परिवार के किसी अन्य सदस्य को पंजाब का मुख्यमंत्री बनने देगी। यह भी उल्लेखनीय है कि जहां शहबाज चुनाव हार गए वहीं उनका बेटा हमजा जीत हासिल करने में समर्थ रहा।

इसमें दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने की तैयारी कर रहे इमरान खान अपने गढ़ खैबर पख्तूनख्वा में अपना जनाधार बढ़ाने में सफल रहे। इस प्रांत में उनकी पार्टी 2013 से सत्ता में है, लेकिन जब तक उनका सिक्का पंजाब में नहीं चलता वह पाकिस्तान के वैसे ताकतवर नेता नहीं बन सकते जैसे जुल्फिकार अली भुट्टो थे। सबसे बड़ी पार्टी का नेता बनने के बाद भी उनका राजनीतिक कद नवाज शरीफ जैसा नहीं है। वह तो इसलिए बढ़त हासिल करने में कामयाब रहे, क्योंकि सेना उनके साथ थी और न्यायपालिका ने नवाज शरीफ को जेल भेज दिया। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इमरान को जहां पंजाब में अपेक्षित समर्थन नहीं मिला वहीं सिंध में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी सरकार बनाने जा रही है।

अब जब पाकिस्तान में नई सरकार बनने जा रही है तब सबसे अहम सवाल यह है कि आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर गंभीर समस्याओं से दो-चार यह पड़ोसी देश किस रास्ते पर जाएगा? पाकिस्तान में अतिवाद उफान पर है तो आतंकवाद भी बेलगाम ही है। खूंखार आतंकी संगठन लश्करे तैयबा ने राजनीति की भी राह पकड़ ली है। चिंता की बात यह है कि इमरान खान ऐसे संगठनों के प्रति हमदर्दी रखते हैैं। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान नया पाकिस्तान के नाम पर वोट मांगे, लेकिन इसके लिए पाकिस्तान की सोच-समझ में व्यापक बदलाव जरूरी है। अपनी विचारधारा बदलने और भारत से हर क्षेत्र में बराबरी करने के इरादे से मुक्त होकर एक जिम्मेदार देश के तौर पर व्यवहार करने पर ही पाकिस्तान नया पाकिस्तान बन सकता है।


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नया पाकिस्तान का यह भी मतलब होगा कि वह आर्थिक और व्यापारिक मामलों में भारत से सहयोग चाहेगा। इमरान खान की पार्टी के घोषणा पत्र में चाहे जो कहा गया हो, उनमें वह क्षमता और योग्यता नहीं नजर आती कि वास्तविक बदलाव की प्रक्रिया शुरू कर सकें। यह तो तय है कि तमाम राजनीतिक ड्रामे के साथ वह कुछ नया करते दिखेंगे, लेकिन इसमें संदेह है कि उसमें कुछ सार्थकता होगी। एक सफल क्रिकेट बनना अलग बात है और प्रधानमंत्री बनकर देश को नई दिशा देना अलग बात। इमरान खान नवाज शरीफ को मोदी का दोस्त बताकर ऐसे नारे के बीच उनकी आलोचना करते रहे हैैं-जो मोदी का यार है वह गद्दार है- गद्दार है।

भारत के बारे में उनके बयान भी यही बताते हैैं कि वह सेना की लाइन पकड़े हुए हैैं। वह भारत से सभी मसलों पर वार्ता करने के संकेत देंगे, पर बिना किसी नई पहल के। उनके नेतृत्व में पाक अपनी पुरानी सोच को ही दोहराता दिखेगा। भारत के खिलाफ आतंकियों का इस्तेमाल करने की नीति में कोई बदलाव होने के आसार नहीं। अगर इमरान सेना की भारत संबंधी नीति से हटना चाहेंगे तो वह इसे सहन नहीं करेगी। कुल मिलाकर भारत को पाकिस्तान में इमरान खान सरकार से किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
कुछ समय पहले इमरान खान की दूसरी पत्नी रेहम खान ने अपनी किताब में उनकी सोच और आदतों पर सवाल उठाते हुए काफी कुछ लिखा था, लेकिन उससे इमरान की सेहत पर असर नहीं पड़ा। पाकिस्तान में लोग यह सोचते हैैं कि एक पूर्व पत्नी को ऐसा कुछ लिखना ही नहीं चाहिए। जो भी हो, रेहम खान की किताब इमरान के व्यक्तित्व को सामने लाती है। इमरान खान तमाम दावे कर रहे हैैं, लेकिन लगता नहीं कि वह पाकिस्तान कोे सही दिशा दिखा पाएंगे। पाकिस्तान को मध्ययुगीन माहौल में ले जाने और हिंसा का सहारा लेने वाले किस्म-किस्म के इस्लामी समूह जिस तरह राजनीति में प्रवेश कर रहे हैैं उससे पाकिस्तान गलत राह पर ही जाता दिख रहा है। हालांकि पाकिस्तान ने आतंकी सरगना हाफिज सईद के राजनीतिक दल को मान्यता नहीं दी, लेकिन उसके समर्थक चुनाव लड़ने में समर्थ रहे। यह पाकिस्तान ही नहीं, पूरे क्षेत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है।

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