सामाजिक न्याय ही सरोकार, वंचितों की पक्षधर सरकार

 भरतचन्द्र नायक

यह एक शास्वत सत्य है कि भारत की जीवन प्रणाली लोकतंत्री है। जिस लोकतंत्र के उदय के इतिहास में भारत को पीछे बताया जाता है वह विवादित और बहस का मुद्दा है। सच्चाई यही है कि भारत के लोक जीवन में लोकतांत्रिक व्यवस्था अघोषित रूप से रची पची हैं यही राम राज्य की कल्पना है, जिसके पेरोकार इतिहास पुरूष के रूप में सराहे गये हैं। आजादी के बाद प्रशासनिक और संवैधानिक दृष्टि से लोकतंत्र की छाया में हमें अधिकार का कवच और कत्र्तव्य का नैतिक बोध कराया गया। लेकिन हमारी जीवन शैली में जनतंत्र रचा-पचा है। 1948 में स्वतंत्रता के जयघोष के बाद स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के सपनों को लेकर बहस शुरू हुई, नारे लगे, वायदे हुए, दुख दैन्य, निरक्षरता,उन्मूलन की कसमें खाई गई। जन-जन के आत्म सम्मान, सामाजिक न्याय के दावे हुए लेकिन जनता और शासन के बीच की खाई जस की तस बनी रही। नब्बे के दशक में जब श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने केंद्र में एनडीए प्रथम का नेतृत्व संभाला गांव, गरीब, किसान मजदूर, दलित, पिछड़ों से सरोकार जुड़ा। कृषि प्रधान देश में गांव किसान,गरीब की वास्तविक चिन्ता मुखरित हुई, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का जमीन पर अवतरण हुआ, खेती की लागत के लिए साख व्यवस्था सरल,सुगम, व्यापक बनाने का काम हाथ में लिया गया। किसान को 18 प्रतिशत ब्याज के कर्ज से मुक्ति का संकल्प धरातल पर उतरा। वनवासियों के हक हकूक लौटाने के लिए वन भूमि अधिकार पर चिंतन आरंभ हुआ, लेकिन 2004 में सत्ता परिवर्तन के बाद अभियान में सुस्ती आने के साथ नजररिया भी तंग हो गया। लेकिन इस दौरान राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारे बनना शुरू हो गया। जो पद चिन्ह श्री अटल जी की सरकार ने अंकित किये थे उन्हें विकास और सुशासन के मिशन के साथ लिये दीप स्तंभ मानकर विकास के चरण तीव्रता से बढ़े। जहां तक मध्यप्रदेश का सवाल है 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनते ही गांव गरीब किसान, मजदूर, पिछड़े वर्ग, दलित के स्तरोन्नयन का बीड़ा उठाया गया। हर क्षेत्र में नये कीर्तिमान गढ़ने का काम शुरू हो गया। इस बात का प्रमाण तो इस दौर में पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में प्रधानमंत्री रहे डाॅ. मनमोहन सिंह ने यह कहते हुए दिया कि नब्बे के दशक में देश के जीडीपी को स्थिरता प्रदान करने में भाजपानीत सरकारों का सराहनीय योगदान है। मध्यप्रदेश में तो 11 साल बेमिसाल दावा ही नही, जन-जन ने जुमला बना लिया। इसके पीछे निहित कारण सरकार की दिशा और दशा स्पष्ट रही। विकास और सुशासन प्रतिबद्धता और सरोकार ही सरकार का अजेंडा रहा। विगत 26 सितम्बर को मध्यप्रदेश में श्री शिवराज सिंह के शासन के 11 वर्ष पूर्ण होने पर घर-घर में विकास और खुशहाली के दीप जले। यह लोकोत्सव बन गया जिस पर मध्यप्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता ने गौरव की अनुभूति व्यक्त की।दरअसल मध्यप्रदेश में ग्यारह साल बेमिसाल का जुमला एक हकीकत है जिसके पीछे शिवराज सिंह चैहान के हृदय की पीड़ा हर सांस की धड़कन ध्वनित होती है। किसान पुत्र होने के नाते उन्होंने किसान की पीड़ा अनुभव की, लोक जीवन में पिछड़ापन, विपन्नता को भोगा और उन्होंने कुछ सपने देखे और अवसर आने पर उन सपनों में यथार्थ का रंग भरने का साहस दिखाया, जो आज देश और दुनिया में लैंडमार्क बन चुका हैं। खेती की तरक्की की दर 4 साल से 20 प्रतिशत बनी है, जो दुनिया में कुतुहल का विषय है। प्रदेश के अति आदिमजाति बैगा समुदाय जिन्होंने विकास की रोशनी नहीं देखी थी उनके लड़के लड़कियां राष्ट्रीय शैक्षणिक स्पर्धा में टाॅप रहे यह किसे अचंभित नहीं करता, लेकिन अनहोनी का होनी बनाना शिवराज का शगल बन गया। जिस देश में आजादी के बाद अन्नदाता से पांच दशक तक 18 प्रतिशत ब्याज वसूल कर उसे ऋण ग्रस्तता से अभिषप्त कर दिया उसे जीरो प्रतिशत ब्याज दर पर फसल कर्ज देकर ऋण ग्रस्तता से आजादी का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया गया। जब देश-विदेश में पता चला कि मध्यप्रदेश सरकार ने बीज, खाद के लिए लिये गये कर्ज पर भुगतान के समय मूलधन पर 10 प्रतिशत की छूट दी गई है तो सभी ने आनन्दातिरेक से दांतों तले अंगुली दबा ली। लेकिन यह कोई करिश्मा नहीं श्री शिवराज सिंह चैहान के क्रांतिकारी करतब कर्म सौंदर्य का ही सुफल है जो आज प्रदेश के गांव-गांव चैपाल की चर्चा बन चुका है। लोकतंत्र की परिभाषा की जाती है जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार ही लोकतंत्र है। शिवराज सिंह चैहान ने समाज के हर वर्ग को बारी-बारी से पंचायत के लिए अपने निवास पर चैगान में नील वितान के नीचे पंचायत लगाई और ऐसे भोलभाले निरोह जन जिन्होंने मुख्यमंत्री से रूबरू होने का अवसर नहीं पाया था, से अनौपचारिक चर्चा में सुझाव आमंत्रित किये। महत्वाकांक्षाओं के पर लग गये और  शिवराज ने दो पंखों के साथ पूंछ भी जोड़कर उन्हें प्रगति के आकाश में उड़ने का सुअवसर दे दिया। जनता ने जो नीति बनाई उस पर सरकार ने मोहर लगा दी। कमोवेश दो लाख वनवासियों को वनभूमि का अधिकार पत्र देकर कृषक बना दिया गया है।मिसाल के तौर पर देखे कि पिछले पांच सौ वर्षों में मध्यप्रदेश में कभी साढ़े सात लाख हेक्टर से अधिक रकवे में सिंचाई नहीं हो सकी। लेकिन हर खेत को पानी और हर हाथ को काम जब सरकार का संकल्प बन जाये तो प्रदेश में ग्यारह साल में सिंचाई क्षमता का 40 लाख हेक्टर हो जाना किसी भी सरकार के पौरूष का प्रमाण ही कहा जायेगा। मध्यप्रदेश का बजट 2003 पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान 21,647 करोड़ रू. था जो 2016 में बढ़कर 1,02,447 करोड़ रू. हो गया। विकास दर4 प्रतिशत से बढ़कर 10.02 प्रतिशत हो चुकी है। विद्युत उत्पादन किसी भी राज्य की प्रगति का मापदंड होता है। प्रदेश में जो बिजली का उत्पादन4673 मेगावाट था और प्रदेश अंधकार में डूब चुका था वह बढ़कर 10231 मेगावाट हो जाने से गांवों में24 घंटा बिजली का आलोक प्रगति का मापदंड बन चुका है। कल कारखानों के पहिया निशियाम अपने संगीत से प्रगतिशीलता की लय साध रहे हैं। खेती की विकास दर माइनस तीन थी जो अब 20प्रतिशत अंकित हो चुकी है और मध्यप्रदेश को चार अवसरों पर कृषि कर्मण सम्मान से अभिनंदित होने का अवसर मिल चुका है। मध्यप्रदेश में कृषि और उद्योगों में संतुलन लाकर विकास का असंतुलन समाप्त करने का जो अभियान सफल हुआ है उसके पीछे प्रदेश में तीन नये औद्योगिक गलियारों का विकास, इंदौर में आईटी पार्क की स्थापना,औद्योगिक प्रशिक्षण, इल्म और हुनर सिखाने के लिए प्रदेश में स्थापित 315 आईटीआई, 715तकनीकि शिक्षण संस्थाओं 211 पाॅलिटेक्निक सहित इंजीनियरिंग महाविद्यालयों की स्थापना 211एमबीए काॅलेजों की सक्रियता है। प्रदेश में अधोसंरचना विकास, सुगम सड़कों का जाल,त्वरित यातायात के साधन, लैंडबेक की स्थापना,एक छत के नीचे समाधान देखकर दुनिया के कारोबारियों, निवेशकों के लिए मध्यप्रदेश एक गंतव्य बन चुका है। मध्यप्रदेश में महिला अत्याचारों पर कड़ाई से नियंत्रण, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए जहां अनुकरणीय पहल हुई वहीं प्रदेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रवर्तित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, डिजीटल ट्रान्जेक्शन, केशलैस इकानामी के क्षेत्र में देश की अग्रणी पहल करने का श्रेय हासिल किया है। महिला सशक्तीकरण में मध्यप्रदेश ने निकायों में उन्हें 50 प्रतिशत आरक्षण देकर निकायों की कमान सौंप दी है। इसी तरह वन विभाग को अपवाद स्वरूप छोड़कर अन्य निकायों में भी आरक्षण देकर महिलाओं का सम्मान बढ़ाने के साथ आत्म विश्वास पैदा कर दिया है। महिला अत्याचार निवारण के लिये विशेष न्यायालय बनाये जा चुके हैं हर पुलिस थाना में महिला डेस्क, नगरों में डायल 100 योजना आरंभ हो चुकी है और भ्रष्टाचार के मामलों में समयबद्ध अनुसंधान,अभियोजन और कड़े दंड के साथ भ्रष्टाचार में बनाई गई अचल संपत्ति को राजसात करने के प्रावधान ने भ्रष्टाचारियों के होश ठिकाने लगा दिये हैं। मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य है जहां 60 लाख गरीब परिवारेां को 1 रू. किलो गेहूं, चावल और आयोडीन नमक दिया जा रहा है। शिवराज का मूल मंत्र राम की चिरैय्या, राम के खेत-खावो री चिरैय्या भर भर पेट लोक कल्याणकारी राज्य की कल्पना वित्तीय समीक्षकों के लिए बहस और शोध का विषय बन गयी है। 

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